Friday, December 2, 2016

इस शिखर से तिरंगा सारी दुनिया को दिखायी देगा

पहले एक लघु-कथा - पहाड़ की साधी सपाट चोटी पर चढ़ने की प्रतियोगिता हो रही थी, भाग ले रहे थे मेढ़क। कुछ मोटे-ताजे और कुछ कमजोर व नाटे। अभी बर्फ भी पड़ कर चुकी थी तो पहाड़ फिसलन भरे थे लेकिन मेढ़कों में उत्साह की कमी नहीं थी। दर्शक भी चारों तरफ आकर खड़े हो गये थे और पत्रकार भी। चारों तरफ से आवाजें आ रही थीं कि ये मरियल से मेढ़क इस चढ़ाई को पूरा नहीं कर सकते हैं। आखिर रेस शुरू हुई और आवाजों का शोर भी बढ़ने लगा। ये पिद्दी ना पिद्दी का शोरबा, भला कैसे रेस पूरी करेंगे! ये कैसे पहाड़ की चोटी तक पहुँचेंगे! मेढ़क टपकने लगे, शोर बढ़ने लगा लेकिन देखते ही देखते एक मेढ़क चोटी पर जा पहुँचा। सारे ही पत्रकार दौड़ पड़े, उस मेढ़क से प्रश्न पूछने लगे कि तुमने कैसे इस दुर्गम चढ़ाई को पूरा कर लिया? क्या तुमने हार्लिक्स पिया था या कोई और उपाय किया था? ना-ना प्रकार के सवाल किये गये लेकिन जवाब नहीं आया, पता लगा कि मेढ़क बहरा था। उसने हताशा की आवाजें सुनी ही नहीं, बस केवल ध्येय पर ध्यान दिया और लक्ष्य पूरा किया।
आज की राजनीति में भी यही हो रहा है, चारों तरफ से हताशा की आवाजे आ रही हैं, मोदीजी ने अपनी राजनैतिक बुलंदियों के दुर्गम पहाड़ पर चढ़ना शुरू ही किया था कि सारे ही लोग चिल्लाने लगे, यह सम्भव नहीं है, यह काम हो ही नहीं सकता और मोदीजी कान में रूई डालकर बस चढ़ते रहे चढ़ते रहे। पहाड़ चढ़ने के बाद ही उन्होंने कान से रूई निकाली। अब वे पहाड़ की चोटी पर हैं और सारे ही विरोधी नीचे तलहटी में खड़े उन्हें नीचे पटकने की चेतावनी दे रहे हैं। वे देश के दुर्गम पहाड़ पर चढ़ चुके हैं, उन्होंने डर को परास्त कर दिया है अब वे ऊतुंग शिखर पर तिरंगा फहराने जा रहे हैं। इस शिखर से तिरंगा सारी दुनिया को दिखायी देगा।

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