Wednesday, October 11, 2017

विदेश में जीवनसाथी और देश में पति

हम घर में दोनों पति-पत्नी रहते हैं, गाड़ी एक ही धुरी पर चलती है। दोनों ही एक-दूसरे को समझते हैं इसलिये कुछ नया नहीं होता है। लेकिन जैसे ही हमारे घर में कोई भी अतिथि आता है, हमारे स्वर बदल जाते हैं, हम खुद को अभिव्यक्त करने में जुट जाते हैं। आप सभी ने इस बात पर गौर किया होगा कि दूसरों के सामने हमारा व्यवहार बदल जाता है। हम निपुण  हैं सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित हो जाता है। महिला का सारा ध्यान इस बात  पर लग जाता है कि वह सिद्ध कर सके कि उसमें सलीका बहुत है, खाना बनाने से लेकर बाजार तक की गहरी पकड़ है और साथ ही पति को साधने की कला भी वह जानती है। इसके विपरीत पुरुष यह सिद्ध करने में लग जाता है कि उससे ज्यादा लापरवाह कोई नहीं और अभी भी वह स्वतंत्र है तथा पत्नी की  बात तो बिल्कुल भी नहीं मानता है। दोनों ही अपनी-अपनी अभिव्यक्ति में लग जाते हैं, कई बार घर का वातावरण खराब हो जाता है और कभी हास्यास्पद। हम बोलने से लेकर हर काम में खुद को अभिव्यक्त करते हैं, हमने कितना अभिव्यक्त किया यह चाहे खुद जान ना पाएं लेकिन सामने वाला तो पक्का जान जाता है।
जब अतिथि चले जाते हैं तो नया अध्याय शुरू  होता है, पत्नी गुर्राती है कि तुम हेकड़ी क्यों दिखा रहे थे? पति एकदम से हथियार डाल देता है कि गलती हो गयी। पति कहता है कि तुमने अतिथियों के सामने इतने पकवान बनाये, मेरे लिये तो नहीं बनाती  हो! पत्नी इठलाकर बोलती है कि आखिर उन्हें भी तो पता लगे कि मैं कितनी सुघड़  हूँ! याने दोनों में फिर सुलह हो जाती है। अतिथियों के सामने जहाँ सुलह रहनी चाहिये थी वहीं कलह रहती है और अकेले में कलह भी हो जाए तो मामला सुलझ जाता है, लेकिन तब सुलह रहती है। कारण बस यही है कि हम जमाने को दिखाना चाहते हैं कि हम क्या हैं। हम अपने जीवन को बेहतर करना नहीं चाहते बस दिखावा करते रहते हैं। हमारा अहम् फूट-फूटकर बाहर निकल जाता है, किसी दूसरे को देखकर। ना चाहते हुए भी कहीं ना कहीं खुद को  प्रकट करने की मानसिकता झलक ही पड़ती है। विकट स्थिति तो तब होती है जब अतिथि मायके या ससुराल के होते हैं, दोनों की ही अभिव्यक्ति परवान चढ़ने लगती है, दोनों ही सिद्ध करने लगते हैं कि मैं श्रेष्ठ हूँ।

इस अहम् का कोई अन्त नहीं है, यही कारण है कि आजकल लोग अकेला रहना पसन्द करने लगे हैं। जहाँ अकेले में पति, पत्नी के कामों में हाथ बंटाता है, वहीं दूसरों के सामने शेर बनकर रहना चाहता है, बस पत्नी इसी सीख को गाँठ बांध लेती है कि कभी साथ नहीं रहूंगी। जो लोग विदेश में रहते हैं, वे तो दोनों ही मिलकर काम करते हैं लेकिन देश में परम्परा नहीं है कि पति काम करे तो विदेश में जो जीवनसाथी था देश में आकर पति बन जाता है, बस पत्नी कहती है कि मैं देश नहीं आऊंगी। इसलिये यदि आप परिवार के साथ रहना चाहते हैं तो बात-बात में खुद को बॉस मानना छोड़ना होगा। दूसरों के सामने अभिव्यक्ति से पहले विचार कर लें कि मेरी अभिव्यक्ति क्या संदेश दे रही है? मैं ऐसा हूँ इससे अच्छा है कि बताएं कि हम ऐसे हैं। नहीं तो सभी यही कहते रहेंगे कि अकेले रहते हैं तभी घर में शान्ति रहती है और तब परिवार एवं अतिथि दूर होते जाते हैं। 

2 comments:

pushpendra dwivedi said...

बेहतरीन भावनात्मक रचनात्मक अभिव्यक्ति

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार पुष्पेन्द्र जी